Tuesday, September 24, 2019

Na Jaane Kyun ...

न जाने क्यों  ... 

न जाने क्यों आज भी मैं, खुद को ढूंढ रहा हूँ,
Mobile और Whatsapp के ज़माने में, कलम खोज रहा हूँ,
जहाँ लोग बस मैं और खुद की दौड़ में भाग रहे है,
यहां अपनी कुर्शी पे बैठा मैं, हम को खोज रहा हूँ। 

न जाने क्यों आज भी मैं, खुद को खोज रहा हूँ,
Make-up और Break-up के ज़माने में, पवित्र मन को खोज रहा हूँ,
प्यार जो बस कुछ लफ़्ज़ों में सिमट कर रह गया है,
न जाने क्यों उसको मैं, लोगों के दिलो में खोज रहा हूँ। 

Freedom के इस दौर में मैं, बंधनो को खोज रहा हूँ,
Individuality के बीच में, संयुक्त परिवार खोज रहा हूँ,
आज के इस दौर में जहाँ लोग Smiley से काम चला लेते है,
न जाने क्यों इसके बीच में, मैं लम्बे Messages खोज रहा हूँ। 

आज की इस तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में, स्थिरता को खोज रहा हूँ,
रुपये कमाने की भाग दौड़ में, खुशियों को खोज रहा हूँ,
आज जब लोग मिलो दूर के लोगों से Facebook और Whatsapp के ज़रिये जुड़े है,
न जाने क्यों इस बीच में, मैं रिश्तो और पड़ोसियों को खोज रहा हूँ। 

Fashion के नाम पे कुछ भी पेहेन लेने के बीच, सभ्यता को खोज रहा हूँ,
Item Song के ज़माने में, मैं Family Movies खोज रहा हूँ,
आज जहाँ लोग Weekend को Party करने का इंतज़ार करते है,
न जाने क्यों मैं इस बीच, एक साथ बैठा परिवार खोज रहा हूँ। 

Time Pass के इस दौर में मैं, सच्ची प्रेम कहानी को खोज रहा हूँ,
"I don't think its working anymore", कहने वाले लोगों के बीच,
कृष्णा-राधा, लैला-मजनू, शिरीन और फरहाद को खोज रहा हूँ,
21स्वी सदी के इस आधुनिक दौर में मैं, गुज़री हुई सदियों को खोज रहा हूँ। 

न जाने क्यों आज भी मैं, खुद को खोज रहा हूँ। 
न जाने क्यों आज भी मैं, खुद को ढूढ़ रहा हूँ। 

Saturday, August 10, 2019

Neer-aasha

इस शब्द का मतलब है नीर की आशा, जल की आशा।  जल जो जीवन है, जिससे सब कुछ है, हम है, तुम हो, ये जहां है। उसी तरह आशाएं है जिससे हम ज़िंदा है। जिसकी वजह हर सुबह लगती है जो कल न हुआ,  शायद आज होगा। इसी के साथ बस इतना ही कहूंगा की पढ़िए और अपने विचार मुझे ज़रूर बताइये।

नीर-आशा .... 

मंज़िलें तो सबको मिली, राहें भी सबकी थी,
बस हम ही है, जो राहगीर की तरह भटक रहे है,
उद्देश्य की तलाश में खुदको,
न जाने किन जलती-बुझती लॉ में, झोंक रहे है। 

कभी मंज़िल दिखती है तो, रास्ते खो जाते है,
कभी रास्ते मिले, तो मंज़िल का पता नहीं,
किनारे पर बैठे उस, मांझी की तरह हो गया हूँ,
जिसकी नांव तो है, पर समुद्र ही सूख गया हो। 

इस अथा  सागर के अवशेष में, अब किस तरह डूबकी लगाऊं,
जब पानी की एक बूँद ही नहीं, तो इसमें उतर के कहाँ जाऊं,
हाँ, शायद गेहराई नाप सकता हूँ इसकी मैं,
पर क्या फायदा ऐसे समुद्र का, इसकी गेहराई का,
जिसमे उतरने के बाद भी, इंसान भीगे न। 

ऐसी ऋतू बन गया हूँ, जिसके आने का कोई महीना नहीं,
तिथि तो है, जो कहती है, कभी आऊंगा मैं भी पुर-जोर पर,
पर क्या फायदा ऐसी ऋतू का, उसके आने का,
जब उसका मज़ा लेने, पपीहा ही न हो किसी डाल पर। 

मैं अकेला, जीवन के एक ऐसे मोड़ पर बैठा हूँ,
जिससे आगे जाने का मार्ग, तो मेरे सामने है,
पर उस पर कभी मैं चलूँगा नहीं,
जिसकी मंज़िल, तन्हाई में घिरा एक रास्ता हो। 

Friday, February 15, 2019

Chhalakti Gaagar ...

Hi All,

This is a call from one's heart to someone who is yet unknown and hidden behind veil.


छलकती गागर ... 


चाहत के इस पल को आज फिर हमने गवां दिया,
चला गया जो दिन, वो जीवन से मिटा दिया,
किसी अक्स की चाह में हम आज भी ज़िंदा है,
उमीदों भरी मंज़िल को, रास्ते में भुला दिया। 

जब आगे बढे हम खोजने किसी को,
हाथ लगी जो, सिर्फ परछाई थी,
दिन के उजाले में हमने,
आज उस परछाई को भी गवां दिया। 

समंदर किनारे चलते हुए, जब पीछे देखा,
तो किसी के क़दमों के निशाँ को साथ साथ पाया,
उमीदों की इन लहरों ने आज,
उन निशानों को भी मिटा दिया। 

तेरी तकरार, तेरी मीठी बात,
तेरी हर उस याद को, संजो कर रखा था हमने,
झोंका एक हवा का जो आया,
संजोए मोतियों को बिखरा दिया। 

प्यार के उन पालो का एक महल सा बनाया था,
तेरी मुस्कुराहटो से, आवाज़ों से उसको सजाया था,
कम्पन एक उठी जो दिल में कही,
आज उस महल की दीवारों को भी तुड़वा दिया। 

सवाल है उस ईश्वर से, सब को बनाने वाले से,
इस देह को मेरी बनाकर, एक दिल तो दिया होता,
धरती पे यूँ उतार मुझे अकेला,
क्यों इस दिल का दूसरा भाग, बनाकर मिटा दिया। 

Saturday, August 25, 2018

Search ...

Hi All,

Hope you all are good, its been long time since i wrote my last poem. This is the one with a thought of someone who is yet to be found. So, please enjoy this one and do write your reviews so that i can improve myself further.

तलाश ...

सूखी हुई धरती की रूह में इक कम्पन है,
दीदार हो उसका जिसकी चाहत की तर्पण है। 
यूँ तो प्यार के रस का रसपान सभी करते है, 
पर इसमें विलुप्त हो जाना ही सच्चा समर्पण है। 

जाने कबसे उसकी आस लिए रास्ते पे बैठा हूँ,
कब आएगी वो, जो मिले उससे पूछता हूँ। 
हर किसी का दरवाज़ा खटखटा कर देख लिया,
हर बार निराश हो, आसमान को देखता हूँ। 

उस माँ से एक बार मज़ाक मज़ाक में पुछा,
कि क्या भूल गयी इस दिल का दूसरा भाग बनाना। 
न मैं राधा हूँ, और न ये द्वापर,
जो कृष्णा के अभाव में व्यतीत कर दूँ जीवन अपना। 

है तलाश आज भी उस चेहरे की जिसे देखा है मैंने,
साफ़ तो कुछ याद नहीं, धुंधला सा देखा था सपने में। 
हर रोज़ इसी खख्याल से नींद खुल जाती है कि,
साफ़ होगी तस्वीर उसकी और झलक मिलेगी आँखों में। 

ये बेचैनी सी क्यों है, समझ नहीं पाता मन,
एक दिन मुलाक़ात होगी, कहते है मुझसे सब जन। 
डर एक ही बात का लगा रहता है इस दिल को,
और उसी की तैयारी में जुटा हुआ है,


की कहूंगा क्या उनसे, जब मिलेंगे दर्शन। 

Friday, September 15, 2017

Stranger ...


अजनबी ... 

क्या है इस शब्द का मतलब,
इसका वजूद, इसकी हकीकत,
आइये जानते है,
समझते है इसको,
थोड़ा करीब से,
एक कहानी के ज़रिये। 

एक दिन चौराहे पे, किसी से मुलाक़ात हो गयी,
क्या पता, इस मुलाक़ात में ऐसी क्या बात हो गयी,
कि कुछ पहचाने से लगे वो,
अपने तो नहीं, पर बेगाने भी न लगे वो। 

कुछ दिन बीते, रातें बीती, बात कुछ और हुई,
हंसने लगे दोनों साथ, मेरी खामियाँ भी नज़रअंदाज़ हुई,
फिर कुछ ऐसा हुआ, कि क्या कहे अब,
रातों को जागना, दिन में खो जाना,
ये हाल किसको सुनाये अब। 

एक रास्ता लड़के को सूझा,
उसने फ़ोन उठाया और फटाफट नंबर घुमाया,
सोच रहे हो, कि लड़की को किया फ़ोन,
और बोल दी दिल की सारी बात। 
पर यहीं तो दोस्तों, एक बात समझ नहीं आती,
लड़के को था इतना डर,
कि उसकी जुबां ही उसका साथ छोड़ जाती। 

फ़ोन तो घुमाया था और हाल-ए-दिल भी सुनाया था,
पर की जिससे बात, वो लड़की नहीं थी,
थी उसकी दीदी, 
लड़के की दोस्त, जो उसे करीब से भी जानती । 
सोचा की कुछ मदद मिलेगी, थोड़ी हिम्मत बढ़ेगी,
पर इस बार भी उसकी किस्मत कर गयी धोखा। 
आलम ये है अब, महीने हुए बात किये,
न ही लड़की मिली और हाथ से चली गयी दोस्त। 

वो लड़का अब अनजान, 
खुद से खुदको छुपाता घूमता है। 
हंसना, खिलखिलाना भूल,
बस कहानियों में खुदको ढूंढता है। 

ये थी वो अजनबी जो अपनों से भी अपनी तो हुई,
इतनी की ये लड़का ही अब खुद से अनजाना हो गया। 

अगर समझ आयी कहानी,
तो लड़के के लिए दुआ कीजियेगा। 
और अगर नहीं आयी,
तो पढ़ के बस मुस्कुरा दीजियेगा। 

शुक्रिया। 

Tuesday, August 15, 2017

Partition..

A poem on partition of India


विभाजन ..

आइये एक कहानी है सुनाते,
हिंदुस्तान की कहानी, जिसे आज़ादी है गाती। 

एक परिवार था, मत पूछो कहाँ,
प्यारा सा, बेहेन भाइयो, रिश्ते नातो से भरा,
आँगन में जिनके त्यौहार गूंजा करते थे,
बिना भेद भाव के जहां गले लगा करते थे। 

बिखर गया है आज वो, भीड़ में कही खो गया,
लोग तो आगे बढ़ गए, पर वो खँडहर हो गया। 
किसी ने इस कदर, उसकी आबरू को है नोचा,
की आज भी उसके निशाँ, दीखते है जिस्म पर। 

नफरत भरी आँखों में, इस कदर,
की आज भी परिंदे उसे देख, जाते है सिहर,
जो कभी एक दूसरे की, हिम्मत का हिस्सा थे,
वह भाई अब, नए घरो में करते है बसर। 

नाम नए ले लिए, पीढ़ियां भी बदल गयी,
प्रगति की चादर से, पुरानी इमारत भी ढक गयी,
उस खँडहर में अब, न ही किरणे है बची,
जो थोड़ी उम्मीद थी, आंसुओं में बह गयी। 

लकीर जब खींची थी किसीने, इस परिवार के दो टुकड़े हुए,
सोचा की अगर साथ रहे, तो एक दूसरे को ख़तम करेंगे,
पर आज भी इनमे, वही राक्षस बास्ते है,
कोई पीछे मुड़कर देखे, तो बताये, कैसे रिश्ते सजते है। 

क्या हांसिल किया अलग होकर,
आज तक बैठे है दिलो में आग लेकर,
बस पुरानी यादों के सहारे जी रहे है,
एक दूसरे के प्यार को तरस्कर। 

कई बार दोनों ने कोशिशें की,
पर नयी रफ़्तार में जज़्बात नहीं है बास्ते,
यहां मिलती तकनीकियां, मारने की, 
मिटाने की, एक दूसरे को निचा दिखने को तरसते। 

कोई बताये,
क्या मिला एक दूसरे से लड़कर, मार कर,
जिस मिटटी के टुकड़े के लिए थे लड़े,
उसी की छाती को बार बार लाल कर। 

आज 70 सालो बाद भी, लोग रोते है, बिलखते है,
जब भी याद आता आज़ादी का मंज़र, लोग डरते है,
जिस दिन खुशियां आनी थी, उसने ग़म की चादर ओढ़ी,
वो आज भी हमारे सीनो  में, शूल से चुभते है। 

जिस दिन घरो में दीप जले थे,
वो आधी रात को आयी,
दीपक के उजाले में मिली,
तो बस उसके अन्धकार की गहराई। 

3 युद्ध और आर्थिक रूप की है ये महामारी,
जिससे जूझते दोनों, रोटी को तरसते है,
सडको पे, गलियों में, गाओं में,
बच्चे दूध को बिलखते है। 

वह मिटटी, जिसकी आबरू के लिए दी कई कुरबानियां,
उसकी छाती अब सूख रही है, ये है हमारी मेहरबानियां,
जो कभी सोना उगला करती थी, दुनिया को रोशन कर,
अब उसके अपने घर पर, गुमसुम है किलकारियाँ। 

विभाजन करने वाले चले गए,
पर उसके ग़म से जुझती नस्लें,
मरहम की उम्मीद में ज़िंदा है,
सूखी छाती और घाव लिए बदन पे। 

" वह माँ आज भी चौराहे पे,
   उम्मीद लगाए देख रही है। 
   कब दोनों बच्चे लौटेंगे,
   और कब ये खँडहर नाचेगा। 
   कब कड़वी यादों पे,
   मरहम वो लगाएगा। 
   कब फिर से इस आँगन में,
   ईद मानेगी, दीप वो जलाएगा।

   क्या ऐसा भी एक दिन आएगा,
   कब ऐसा भी एक दिन आएगा। "

Saturday, February 18, 2017

You ...

This one is something special for me...


You ...

It was raining like hell, when I saw you for first time,
It wasn't the usual rain, rather was rain of your smile,
I wasn't able to imagine, what it was actually,
I was sweating profusely in the middle of windy night.

It was my eyes that kept searching for you,
It was my ears that kept looking for you,
Why I always wanted to be around, I don't know,
But the feeling that I got, I knew it was you.

They say that love has no shape, then why it looks like you,
They say that love has no voice, then why it heard like you,
I was alone, suffering and evaporating slowly in my world,
Then why now I want to get condensed with you.

I never thought, I will be writing this,
I never thought, I will feel like this,
I know, you will never be mine,
Then why still, it feels content with you.

I know, I would never say this to you,
I know, I would never let you know,
I fear of the neglect that I might receive,
Then why it still says to be with you
and let you know.